भारत में पैसे का इतिहास.


भारत के पैसे का इतिहास अत्यंत रोचक और समृद्ध है। यह भारतीय सभ्यता के विकास और सांस्कृतिक विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आइए इसके मुख्य पहलुओं पर नज़र डालते हैं:

1. प्राचीन काल (वैदिक और मौर्य युग)


बार्टर सिस्टम: सबसे पहले वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) का उपयोग होता था, जिसमें लोग वस्तुएं और सेवाएं आपस में अदला-बदली करते थे।

पहला सिक्का (600 ई.पू.): महाजनपद काल में पंचमार्क सिक्के चलन में आए। ये चांदी के बने होते थे और इन पर पंच चिह्न अंकित होते थे।

मौर्य साम्राज्य (321–185 ई.पू.): इस युग में मुद्रा प्रणाली व्यवस्थित हुई। सिक्कों पर राजाओं के नाम और प्रतीक अंकित किए जाने लगे।


2. मध्यकाल (गुप्त और मुगल युग)


गुप्त साम्राज्य (319–550 ई.): इस युग में सोने के सिक्के (दीनार) अत्यधिक प्रचलित थे। इन पर भगवान और राजाओं की आकृतियां होती थीं।

मुगल काल (1526–1857): मुगलों ने चांदी के रुपये (Rupee) को प्रचलित किया। “रुपया” शब्द का उद्भव यहीं से हुआ। अकबर और शेरशाह सूरी के समय मुद्रा प्रणाली और अधिक संगठित हुई।


3. ब्रिटिश काल (1757–1947)


ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने एकीकृत मुद्रा प्रणाली लागू की।

1862 में पहला आधुनिक सिक्का जारी किया गया, जिसमें विक्टोरिया रानी का चित्र अंकित था।

1917 में, भारत में पहली बार पेपर करेंसी (कागज़ी मुद्रा) जारी की गई। 1 रुपये का नोट सबसे पहला नोट था।


4. स्वतंत्रता के बाद (1947-वर्तमान)


1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्रा प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाली।

1950 में भारत का पहला सिक्का और नोट जारी किया गया, जिसमें अशोक स्तंभ और गांधीजी की तस्वीर थी।

1996 में महात्मा गांधी सीरीज के नोट जारी किए गए, जो आज भी मुख्य प्रचलन में हैं।

2016 में नोटबंदी के बाद, नए 500 और 2000 रुपये के नोट जारी किए गए।


5. डिजिटल युग


वर्तमान में डिजिटल मुद्रा का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। UPI, Paytm, और Google Pay जैसी सेवाएं अब आम हो गई हैं।

2022 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने डिजिटल रुपया (CBDC) का परीक्षण शुरू किया।


प्रमुख विशेषताएं और प्रतीक


भारतीय नोटों पर विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरें दर्शाई जाती हैं, जैसे सांची स्तूप, महात्मा गांधी, मंगलयान आदि।

भारतीय मुद्रा की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “INR” (Indian Rupee) के रूप में होती है।


यह इतिहास न केवल आर्थिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक विकास का भी प्रतीक है।


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