नमस्कार पाठकों! आज हम बात करेंगे एक ऐसे शख्स की, जिन्होंने जातीय अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की और दलित समाज को नई उम्मीद दी। चंद्रशेखर आजाद, जिन्हें ‘रावण’ के नाम से भी जाना जाता था, एक वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और अब एक सांसद हैं। उनका जीवन संघर्ष, साहस और समर्पण की मिसाल है।
वे न केवल भीम आर्मी के संस्थापक हैं, बल्कि आजाद समाज पार्टी के माध्यम से राजनीतिक क्षेत्र में भी क्रांति ला रहे हैं। आइए, उनकी जीवन गाथा को विस्तार से जानें, जो हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो न्याय की लड़ाई लड़ना चाहता है।
प्रारंभिक जीवन: गरीबी और संघर्ष की नींव
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 3 दिसंबर 1986 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के धड़कौली गांव में हुआ था। उनका जन्म एक साधारण दलित परिवार में हुआ, जहां उनके पिता गोवर्धन दास एक सरकारी स्कूल के सेवानिवृत्त प्रिंसिपल थे, और माता कमलेश देवी घर संभालती थीं। परिवार में तीन भाई हैं - बड़ा भाई भगत सिंह, और छोटे भाई कमल किशोर तथा मनीष। बचपन से ही उन्होंने जातीय भेदभाव को करीब से देखा। उनकी मां के अनुसार, स्कूल में दलित बच्चों के साथ ऊपरी जातियों द्वारा किया जाने वाला भेदभाव उनके दिल में गहरा असर छोड़ गया। यह अनुभव ही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बना।
शिक्षा के क्षेत्र में चंद्रशेखर ने देहरादून के डीएवी पीजी कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की। 2011 में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाने की योजना बना रहे थे, लेकिन दलित अधिकारों की लड़ाई ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने वकालत को अपना हथियार बनाया और सामाजिक न्याय की दिशा में कदम बढ़ाया।
भीम आर्मी का उदय: दलितों की ढाल बनना
2015 में चंद्रशेखर ने ‘भीम आर्मी भारत एकता मिशन’ की स्थापना की, जो आज 50,000 से अधिक सदस्यों वाली एक मजबूत संगठन है। इसका उद्देश्य दलितों पर होने वाले अत्याचारों को रोकना और उन्हें शिक्षा तथा अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। ‘रावण’ नाम उन्होंने इसलिए अपनाया क्योंकि रावण को समाज में नकारात्मक रूप से चित्रित किया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे दलितों को। यह नाम उनके विद्रोही स्वभाव का प्रतीक बना।
2016 में, उन्होंने अपने गांव के प्रवेश द्वार पर “द ग्रेट चमार” का बोर्ड लगाने की कोशिश की, जिसका ठाकुरों ने कड़ा विरोध किया। यह घटना उनके साहस की पहली झलक थी। भीम आर्मी के तहत उन्होंने कई अभियान चलाए, जैसे स्कूलों में दलित बच्चों की सुरक्षा और जातीय हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन। उनकी नेतृत्व क्षमता ने उन्हें दलित युवाओं का हीरो बना दिया।
संघर्ष और गिरफ्तारियां: न्याय की कीमत
चंद्रशेखर का जीवन चुनौतियों से भरा रहा। मई 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में ठाकुरों और दलितों के बीच हिंसा भड़क उठी। महाराणा प्रताप जयंती के दौरान तेज संगीत पर आपत्ति जताने पर दलित घरों को आग लगा दी गई। इसके जवाब में दलितों ने विरोध किया, और चंद्रशेखर पर एफआईआर दर्ज हुई। 9 जून 2017 को उन्हें हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से गिरफ्तार किया गया, जब वे भूमिगत थे। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत जेल में डाल दिया गया।
15 महीने की कैद के बाद नवंबर 2018 में रिहा हुए, लेकिन दिसंबर 2019 में सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली के दरियागंज में फिर गिरफ्तार हो गए। तिहाड़ जेल में बंद रहे, लेकिन जनवरी 2020 में जमानत मिली। इन गिरफ्तारियों ने उन्हें और मजबूत बनाया, और वे बोले, “मैं सिद्धांतों पर समझौता नहीं करूंगा, मौत को पसंद करूंगा।”
राजनीतिक सफर: सांसद बनने की विजय
जेल से बाहर आने के बाद चंद्रशेखर ने राजनीति में कदम रखा। 15 मार्च 2020 को उन्होंने ‘आजाद समाज पार्टी’ की स्थापना की। 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने नागिना सीट से जीत हासिल की, जो दलित राजनीति के लिए एक मील का पत्थर है। यह जीत न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि दबे-कुचले वर्गों की आवाज को संसद तक पहुंचाने का प्रमाण है।
विवाद और उपलब्धियां
चंद्रशेखर पर कई विवाद रहे, जैसे हिंसा भड़काने के आरोप, लेकिन उन्होंने हमेशा इन्हें राजनीतिक साजिश बताया। उनकी उपलब्धियां अनगिनत हैं - लाखों दलितों को जागरूक करना, शिक्षा अभियान चलाना, और अब संसद में उनकी उपस्थिति। वे डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुयायी हैं और उनके विचारों को जीवंत रखते हैं।
निष्कर्ष: एक प्रेरणा स्रोत
चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ की कहानी बताती है कि संघर्ष से ही क्रांति जन्म लेती है। एक साधारण गांव के लड़के से सांसद बनने तक का उनका सफर हर युवा को सिखाता है कि न्याय के लिए लड़ना कभी व्यर्थ नहीं जाता। वे दलित अधिकारों के सच्चे योद्धा हैं, जिनकी आवाज आज पूरे देश में गूंज रही है। यदि आप भी सामाजिक बदलाव चाहते हैं, तो उनकी कहानी से प्रेरणा लें।
धन्यवाद पढ़ने के लिए! अपनी राय कमेंट्स में साझा करें। जय भीम! जय भारत!